उदयपुर। झीलों की नगरी उदयपुर ने शनिवार शाम एक ऐसा क्षण सहेजा, जो लंबे समय तक स्मृतियों में जीवित रहेगा। विद्या भवन स्कूल के मुक्ताकाशी रंगमंच पर जब सरकारी स्कूल के बच्चों ने नाटक ‘गूगल कर ले रे…’ प्रस्तुत किया और हाल ही अंतरिक्ष से लौटे भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला स्वयं मंच पर उनके साथ खड़े दिखाई दिए, तो पूरा परिसर तालियों और भावनाओं से गूंज उठा। यह केवल एक नाट्य प्रस्तुति नहीं थी, बल्कि सपनों, आत्मविश्वास और संभावनाओं का उत्सव था।
‘गुगल कर ले रे…’ नाटक ने आज के डिजिटल युग में बिना तकनीक पर निर्भर हुए सोचने, पढ़ने और अनुभव से सीखने की महत्ता को रेखांकित किया। पहेलियों को सुलझाने की यह यात्रा पुस्तकालय, समाज और अंततः एक अंतरिक्ष यात्री तक पहुंचती है—और यही यात्रा बच्चों को यह विश्वास दिलाती है कि ज्ञान केवल स्क्रीन में नहीं, जीवन के अनुभवों में भी छिपा है। आरंभ में अतिथियों के यहां पहुंचने पर क्रिएटिव सर्किल के सुनील एस. लड्ढा, डॉ. कमलेश शर्मा, हेमंत जोशी आदि ने स्वागत किया।
राष्ट्रगीत से आरंभ हुए कार्यक्रम का संचालन कहानी वाला रजत ने किया।
सरकारी स्कूल के बच्चों की दमदार प्रस्तुति :
संभागीय आयुक्त प्रज्ञा केलरमानी की मौजूदगी में मंचित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय वरड़ा के विद्यार्थियों ने जिस आत्मविश्वास, सहजता और संवेदनशीलता के साथ मंच संभाला, उसने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा किसी संसाधन की मोहताज नहीं होती। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए इन बच्चों ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को हंसाया, सोचने पर मजबूर किया और अंत में भावुक भी कर दिया। मंच पर उनकी आंखों में चमक और संवादों में सच्चाई साफ झलक रही थी, जिसे दर्शकों ने खुले दिल से सराहा।

शुभांशु की प्रस्तुति ने डाली जान :
इस नाटक की सबसे भावनात्मक और प्रेरक घड़ी तब आई, जब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला नाटक के एक दृश्य में मंच पर आए। बच्चों के साथ संवाद करते हुए उन्होंने अंतरिक्ष में बिताए पलों को सरल और आत्मीय भाषा में साझा किया। बच्चों की जिज्ञासाओं का जिस अपनत्व से उन्होंने उत्तर दिया, उसने पूरे माहौल को मानवीय संवेदना से भर दिया। यह दृश्य मानो यह संदेश दे रहा था कि बड़े सपने देखने की शुरुआत छोटे मंचों से ही होती है।
ब्रह्मांड से बड़ी सोच और जिज्ञाासा :
कार्यक्रम के समापन पर ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रह्मांड बड़ा है, लेकिन उससे भी बड़ी हमारी सोच और जिज्ञासा होनी चाहिए। अगर जिज्ञासा जीवित है, तो रास्ते अपने आप बनते जाते हैं।
इन कलाकारों ने संभाला मंच :
कहानीवाला रजत द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन टीम संस्था के सुनील टांक और सोनू परिहार (जयपुर) ने किया, जबकि सूत्रधार की भूमिका में जनसंपर्क विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. कमलेश शर्मा ने प्रस्तुति को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया। मंच पर बच्चों के साथ सुनील एस. लड्ढा, हेमंत जोशी, संदीप राठौड़, नीलोफर मुनीर और प्रियंका कोठारी जैसे कलाकारों की उपस्थिति ने बच्चों का मनोबल और भी बढ़ाया।

यह थी नाटक की विषयवस्तु :
गांव के एक सरकारी स्कूल के बच्चों को उनके शिक्षक द्वारा बिना गूगल की सहायता से तीन पहेलियों को हल करने का टास्क दिया जाता है और इसके लिए उन्हें दस हजार का पुरस्कार देने की बात भी कही जाती है। स्कूल के बच्चे गोपू, पुनम और टीकू इन पहेलियों का हल खोजने के लिए स्कूल लाइब्रेरी के बाद पत्रकार के पास जाते हैं परंतु उन्हें सफलता नहीं मिलती है। इसके बाद दो आर्किटेक्ट से दो पहेलियों का हल खोजने के बाद उन्हें तीसरी पहेली का जवाब मिलता है अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला के पास। शुक्ला बड़े प्यार से अंतरिक्ष में अपने अनुभवों को शेयर करने साथ—साथ उनकी पहेली का जवाब भी देते हैं। बगैर गूगल किए पहेलियों का जवाब ढूंढने की यह रोचक प्रक्रिया ही इस नाटक की विषयवस्तु है।
इस प्रेरणादायी आयोजन को सफल बनाने में शहर की कला संस्था क्रिएटिव सर्किल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कार्यक्रम को आरएसएमएम, वंडर सीमेंट, नींव, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर और विद्या भवन सोसायटी का सशक्त सहयोग मिला। इन संस्थाओं के सहयोग से सरकारी स्कूल के बच्चों को ऐसा मंच मिला, जहां वे बिना किसी भेदभाव के अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सके।
बच्चों ने पूछे कई सवाल :
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला से संवाद के दौरान बच्चों ने बड़े उत्साह और जिज्ञासा के साथ अंतरिक्ष यात्रा से जुड़े कई सवाल पूछे। उन्होंने अंतरिक्ष में बिताए पलों, पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखने के अनुभव और वहां के जीवन के बारे में रोचक एवं प्रेरक जानकारी साझा की। बच्चों ने यह भी जानना चाहा कि एक अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए किस तरह की पढ़ाई, कोचिंग और कठोर प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। शुभांशु शुक्ला ने सरल शब्दों में समझाते हुए बताया कि विज्ञान विषयों में मजबूत आधार, अनुशासन, निरंतर मेहनत और आत्मविश्वास ही इस सपने को साकार करने की कुंजी हैं। उनका प्रेरणादायक संवाद बच्चों के लिए न केवल ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की नई ऊर्जा और सपने भी दे गया।






