उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर द्वारा आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ के अंतर्गत रविवार को ‘आधे अधूरे’ नाटक का मंचन किया गया। दर्शकों से खचाखच भरे सभागार में इस प्रस्तुति को खूब सराहा गया।
पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर के निदेशक फ़ुरकान खान ने बताया की प्रति माह आयोजित होने वाली मासिक नाट्य संध्या रंगशाला के अंतर्गत सार्थक नाट्य समिति जयपुर द्वारा ‘आधे अधूरे’ नाटक का मंचन रविवार को शिल्पग्राम उदयपुर स्थित दर्पण सभागार में किया गया। इस नाटक के लेखक मोहन राकेश एवं निर्देशक साबिर खान है। आधे-अधूरे आधुनिक हिंदी रंगमंच का सर्वश्रेष्ठ युगांतरकारी नाटक है जो शहरी मध्यवर्गीय परिवार में मूल्यों के परिवर्तन को दर्शाता है। नाटक संबंधों के विघटन व् उनके टूटने के विषय से संबंधित है, लेकिन बहुत अलग तरीके से। आज़ादी के बाद उभरे मध्यवर्गीय परिवार की मूल्य व्यवस्था की निराशा, टूटन, बिखराव और घोर सड़न को लेखक ने बखूबी उधेड़कर उजागर किया, और उसे मार्मिक ढंग से पेश किया है। इस नाटक में सावित्री – रुचि भार्गव नरुला, पांच पुरुष – साहिल आहूजा, अशोक – अनुरंजन शर्मा, बिन्नी – आयुषी दीक्षित, किन्नी – लक्ष्मी तिवारी ने किरदार निभाया। सेट एवं मंच सज्जा आसिफ़ एवं शेर अली ख़ान, संगीत – दीपक गुजराल, प्रकाश व्यवस्था – उज्ज्वल प्रकाश मिश्रा ने किया।
रंगमंच प्रेमियों ने केन्द्र की प्रशंसा की और ऐसे आयोजन करने के लिए धन्यवाद किया। अंत में सभी कलाकारों का सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में केन्द्र के उप निदेशक (कार्यक्रम) पवन अमरावत, दयाराम सुथार सहित शहर के कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन केन्द्र के सहायक निदेशक (वित्त एवं लेखा) दुर्गेश चांदवानी ने किया।
नाटक की कहानी –
आधे अधूरे एक स्त्री .पुरुष के बीज के तनावों का दस्तावेज है। इस परिवार की मुख्य पात्र सावित्री एक बेल की भांति है जो अपने जीवन में एक पुरुष की तलाश में है जो संपूर्ण पुरुष हो। मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक में ऐसे परिवार की कहानी है जिसका हर पात्र अपने जीवन में आधा-अधूरा है। इस भव सागर में निर्जन सा जीवन जी रहे हैं। सभी सदस्य उलझनों में उलझे रहते हैं। अपने-अपने अस्तित्व की तलाश में सभी के विचार हर घड़ी एक दूसरे से टकराते रहते हैं।






