उदयपुर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ व सुखाड़ बाढ़ विश्व जन आयोग, तरुण भारत संघ के संयुक्त तत्वावधान में ‘मरु अरावली सुखाड़ बाढ़ मुक्ति की युक्ति पर जन संवाद, स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर डबोक में आयोजित हुआ।

बाढ़ सुखाड़ जन आयोग के अरावली क्षेत्र के कमिश्नर एवं विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति  प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने प्रकृति को उसके प्राकृतिक स्वरूप दिलाने का आव्हान करते हुए मरु व अरावली के संरक्षण को एक चुनौती बताया और कहा कि इस समस्या का समाधान स्थानीय लोगों के पास है। हमें जल चक्र के डेटा संग्रहित कर स्थानीय ज्ञान व वैज्ञानिक विश्लेषण के समावेश का उपयोग करना होगा।

साथ ही मानवीय मनोवृत्ति बदलने को भी आत्मसात करना होगा। जल ही जीवन है कि जगह जल में ही जीवन की संकल्पना को अपनाना होगा। पर्यावरण प्रदूषण का दुष्प्रभाव भावी पीढ़ी में नकारात्मकता का कारण बनता जा रहा है जिसका एकमात्र निदान जल संग्रहण व संरक्षण में कुशल प्रबंधन करना है। उन्होने कहा कि हमें प्रकृति को सुधारना है तो उससे पहले हमें अपनी प्रवृत्ति में सुधार लाना होगा जिसकी शुरूआम हमें अपने घरों से करनी होगी। जब पानी हमारे घरो तक पहुंचा है , तब से हमने उसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया है। प्रकृति की 10 हजार प्रजातियॉ खत्म होने के कगार पर है  और एक लाख से अधिक समाप्त हो चुकी है।

हमें अपने परम्परागत तरीको पर पुनः लौटना होगा और जंगल, ताल, तलईया, नाले व मेढबंदी को संरक्षित करना होगा।
वाटरमैन डॉ. राजेन्द्र सिंह ने जनसंवाद कार्यक्रम में भाग लेने वाले किसानों की समस्याओं को सुनाते हुए कहा कि हमें मन मस्तिष्क को खोलकर विद्या को अपनाते हुए प्रकृति के प्यार को बढाना होगा साथ ही उन्हें अपनाकर व्यवहार में लाना होगा। हमें हमारी नदियों को मॉ का दर्जा देकर मैला ढोने वाली मालगाड़ी बनाने से मुक्त करना होगा। बाढ़ एवं सुखाड दोनांे ही स्थितियों से निपटने की पहली कोशिश में कम जल की उपयोगिता की दक्षता विकसित करनी होगी। व्यवहार में बदलाव लाना होगा और जब हर एक व्यक्ति अपने स्वयं में बदलाव करेगा तो वह प्रकृति से स्वतः ही जुड़ता जायेगा। आज पूरा विश्व पर्यावरण की चिंता कर रहा है। आजादी से पूर्व कभी बाढ़ नहीं आती थी, जब से हमने इसका दोहन शुरू किया तब से प्रकृति ने अपना रूप बदलना शुरू किया।
लोक निकेतन संस्थान बनासकांठा, गुजरात के प्रबंध निदेशक  किरण चावड़ा ने शिक्षा व विद्या में अंतर बताते हुए भावी पीढ़ी में विज्ञान की सूचना में शोध, संकल्पना, एवं नवाचार को सम्मिलित कर व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने की बात कही व कहा कि प्रकृति में स्व उद्धार की एक प्रबल शक्ति होती है बशर्ते मानव हस्तक्षेप कम हो।

About Author

Amolak News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *