जिसने भी सुना घनश्याम नहीं रहे, एकाएक नहीं हुआ विश्वास…

उदयपुर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क अधिकारी 51 वर्षीय डॉ. घनश्याम सिंह परिहार का सोमवार को प्रातः 6.30 बजे हद्धयगति रूक जाने से असामयिक निधन हो गया। जिसने भी सुना घनश्याम सिंह नहीं रहे एकाएक किसी को विश्वास नही हुआ।  
प्रातः 6 बजे नित्यक्रिया करने के बाद बैठे ही थे कि अचानक उनका तबियत खराब होने के बाद उन्हे तुरंत सेक्टर 06 स्थित सिद्धी विनायक हॉस्पीटल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उन्होने अंतिम सांस ले ली। निधन का समाचार सुनते ही पुरे विद्यापीठ में शोक ही लहर छा गई। जिसने भी असामयिक निधन की खबर संुनी अवाक रह गये, सबको सहसा विश्वास नही हुआ कि विधाता ने भाग्य में ऐसी अनहोनी लिख दी है। इस समाचार का किसी को विश्वास ही नही हो रहा था।
परिहार का सेक्टर 13 स्थित मोक्षधाम घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार यात्रा में कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर, रजिस्ट्रार हेमशंकर दाधीच, डॉ. संजय बंसल, भाजपा जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली, कमलेन्द्र सिंह पंवार, दिनेश मकवाना, मंजीत सिंह गहलोत, पार्षद महेश द्विवेदी, गिरिश भारती, अजय पोरवाल, गौरव प्रताप सिंह, पूर्व अध्यक्ष पंकज चौधरी,  राजेश वैरागी, दीपक बोल्या, दिनेश गुप्ता, उदय सिंह देवडा, नितिन पटेल, चंचल अग्रवाल, राजकुमार खण्डेलवाल, राजेन्द्र सिंह जगत, कर्णवीर सिंह राठौड, उदय सिंह देवडा, डॉ. हरीश शर्मा, सुभाष बोहरा, चन्द्रशेखर द्विवेदी, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, डॉ. दिलीप सिंह चौहान, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. भवानीपाल सिंह राठौड, डॉ. आशीष नन्दवाना, जितेन्द्र सिंह चौहान, डॉ. विजय दलाल, डॉ. ओम पारीख, भाजपा के मोहन गुर्जर, कैलाश सोनी, मिडियाकर्मी सहित  शहर के धार्मिक, सामाजिक , राजनीतिक व विद्यापीठ के सेकड़ों कार्यकर्ताआंे अपनी नम आंखो से उन्हे अंतिम विदाई दी। गमनीय महौल में पिता भेरूसिंह, पुत्र कार्तिकेय, पुत्री सारा ने मुखग्नि दी। अंतिम संस्कार में बडी संख्या में अपने यार मित्र, मार्गदर्शक, विद्यापीठ कार्यकर्ता परिहार के अंतिम दर्शन कर फूट फूट कर रोने लगे। वे अपने पिछे पूरा भरापूरा परिवार छोड कर गये।
कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि विद्यापीठ ने निष्ठावान, कर्तव्य निष्ठ व ईमानदार कार्यकर्ता को खो दिया जिसकी आने वाले सामय में पूर्ति की जानी असंभव है। वे हर उम्र दराज व्यक्ति के प्रिय थे, अपनी बोलचाल से हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर देते थे। विद्यापीठ की 26 वर्ष की सेवा के दौरान पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ कार्य किया। वे मृदुभाषी, हंसमुख, मिलनसार एवं सभी के हद्धय सम्राट थे। वे सभी के सुख दुख में सदा साथ खडे नजर आते थे। विद्यापीठ परिवार की आंखों का तारा हमेशा के लिये ध्रूव तारा बन गया।

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