सम्मेद शिखर जी की पवित्रता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरा जैन समाज, मौन रहकर जताया विरोध

निलेश कांठेड़

भीलवाड़ा। कहते है कि विरोध जताने का सबसे बेहतर तरीका है मौन रहा जाए। विरोध की इसी राह का अनुसरण शुक्रवार को अहिंसा परमों धर्म में विश्वास रखने वाले भीलवाड़ा में सकल जैन समाज ने किया। समाज ने बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि तीर्थस्थल सम्मेदशिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने के झारखंड सरकार के निर्णय के विरोध में सड़कों पर उतर कर अपनी भावनाओं का इजहार किया। सरकार के फैसले पर नाराजगी जताने और फैसला वापस लेने की मांग करते हुए हजारों श्रावक-श्राविकाओं का सैलाब रोड पर उमड़ा लेकिन कहीं नारों का शोर नहीं था।

विरोध प्रदर्शन में सहभागी बनने के लिए समाजजनों ने दोपहर 12 बजे तक अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान भी बंद रखे थे। मन के भाव जताने के लिए हाथों में नारे लिखी तख्तियां लिए हुए श्वेत वस्त्रों में श्रावक एवं केसरिया साड़ी में श्राविकाएं कदम से कदम मिलाते हुए राजेन्द्र मार्ग स्कूल से कलेक्ट्रेट तक चले। विरोध के इस मंजर ने कुछ वर्ष पहले संथारा-संलेखना पर रोक के मुद्दे पर जैन समाज के सड़कों पर उतरने की यादे ताजा कर दी। कलक्ट्रेट पहुंचने के बाद बाहर जैन समाज के श्रावक-श्राविकाएं महामंत्र नवकार का जाप करते रहे और अंदर सकल जैन समाज के प्रतिनिधियों ने जिला कलक्टर आशीष मोदी को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया।

ज्ञापन में झारखंड सरकार से मांग की गई कि तीर्थस्थल सम्मेदशिखरजी की पवित्रता एवं मर्यादा कायम रखने के लिए उसे पर्यटन क्षेत्र घोषित करने का फैसला वापस लिया जाए। ज्ञापन में कहा गया कि सम्मेदशिखरजी तीर्थ जैन समाज के सबसे पवित्र स्थानों में है और उससे सभी की भावनाएं जुड़ी हुई है। पर्यटन स्थल घोषित करने के फैसले से समाज की भावनाएं आहत हुई है ओर इससे तीर्थस्थल की पवित्रता व गरिमा भी खतरे में है। ज्ञापन देने वालों में श्रीवर्धमान स्थानकवासी संघ भीलवाड़ा के अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड़, सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष सोहनलाल गंगवाल, श्री तेरापंथ समाज के अध्यक्ष जसराज चौरड़िया, मूर्तिपूजक संघ समाज के अध्यक्ष मुकनराज बोहरा एवं आयोजन संयोजक प्रवीण चौधरी शामिल थे।

समाज ने पेश की अनुशासन की मिसाल

सामान्यतया सरकार के खिलाफ किसी समाज के सड़क पर उतरने की सूचना से ही पुलिस एवं प्रशासन का तनाव बढ़ जाता है लेकिन शुक्रवार को मंजर अलग दिखा। पुलिस ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध अवश्य किए लेकिन समाज के आचरण एवं इतिहास को देखते हुए मन में एक निश्चितंता का भाव था कि इस आयोजन से कानून व्यवस्था को कोई खतरा नहीं होगा। हजारों की संख्या में एकत्रित होने के बावजूद समाज ने अनुशासन की मिसाल कायम की। न तो जुलूस के मार्ग में कहीं रास्ता बाधित करने का प्रयास हुआ न ही कलक्ट्रेट पहुंचने के बाद अंदर जबरन प्रवेश का कोई प्रयास किया। पुलिस ने जैसा कहा उसकी पालना करते हुए समाज ने अनुशासन का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए यह बता दिया कि विरोध जताने के लिए पथराव करना या तोड़फोड़ करना जरूरी नहीं है मौन रह कर भी सरकार तक अपनी भावनाएं पहुंचाई जा सकती है।

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